Saturday 6 June 2015

                  टुट्टिया तारा  अम्ब्रां तों  

सुन लोका ,
अज्ज  मेरे चंद नू ग्रहण खा गया 
ते मैं दर्दां दे दो टुक्कर
हंजुआं दे सलूने पाणी णाल  
घुट घुट करदियां पीके
उदासी दी नेहरी चादर दी बुक्कल मार 
मस्सिया दी रात दी गोद विच जा सौं गई 
 
कल दी गल है 
लौढ़ी वेलीं जद  मैं अपणे बनेरे तों झाती मारी 
तां णाल दे वेड़े विच चाँदनी नू खेडदे वेख सोचेया
इक दिन मेरे वेढे वी चन खेड़ेगा ते ओहदियां
पजेबां दी आवाज़ नाल कई सुत्ते गीत जाग उठ्ठण गे

  ऍह सोचदे सोचदे 
सुपनियां दी दुनियां देखण लई
मैं जागदी रही
ते हुन जद  मेरे चंद  नू ग्रहण लग़ गया
मेरे अनइन्द्रे नू नींद आ गई  
 
मेरीआं अखाँ चों किरदे
हंजुआं नाल उदासी दी चादर वी भिज्ज गई
ते रात राणी दी खुशबोई
नाल घुल  मिल्ल के  
मेरे हंजुआं दा इक कतरा फ़ैल गया
ओस अनंत सागर विच
जो  चंद तारियां तों वी अगाहं है

ओस्से वेले इक तारा
अम्ब्रां तों टुट्दा टुट्दा धरती ते डिगिया
राह च मेरे हंजू नू अपनी लौ विच समेटदे  होये
इक दूर बर्फीली चोटी ते जा डिग्गा
हंजू विच मेरे टुट्टे  होए सुपने दा
इक टुकड़ा वी खुबिया होया सी

इक टुट्टिया तारा ,इक अधूरा सुपना ते इक किरिया हंजू
रल्ल के चंद दी उडीक करण लग्गे
तिन्नों इक मिक होके उडीकदे उडीकदे
इक ढेले वांग पथरा गए

फेर किन्ने ही चिर्रां बाद
कितों दूर अधि रात नू
बांसुरी दी मिठी मिठी धुन
वादी विच सुनाई दिंदी होई दब्बे पैर
 मल्लकडे जहे मेरे वेढे व्ही आ पुज्जी

ओह ढेला जिस विच इक टुट्टिया तारा,
इक अधूरा सुपना ते इक किरिया हंजू पथरा गए सन
एस धुन नु सुन के पिघल गया
ते चंद दी इक रिश्म फड़ के
आ पुजिया मेरे वेढे

ओह अधूरा सुपना आ जुडिया
बाकी दे सुपने णाल
ते हंजू ने रात रानी नू सिंजिया
  ते उसदी खुशबोई  णाल
मुहल्ले विच खबर बन्न के फैल गया
कि ओस रात मेरी कुख विच
इक टुट्टिया तारा आ वस्सिया
जो चंद बन्न अज्ज मेरे वेढे विच
किलकारियाँ मारदा लुक्का छिप्पी खेड रिया है
copyright@Dr. Sunil Kaushal
 


सुनो लोगो, आज मेरे चाँद को ग्रहण निगल गया

और मैं दर्दों के दो निवाले आँसूओं के नमक साथ

घूँट घूँट पी, उदासी की अँधेरी चादर ओढ़

अमावस्या  की गोद में जा सो गई l


अभी कल शाम ही की बात है जब मैंने अपनी मुंडेर से झांका तो

पड़ोस वाले आँगन में चांदनी को खेलते देखा

दिल में ख्याल आया कि इक दिन मेरे आँगन में भी चाँद खेलेगा

और उसकी पायल की छम छम से कई सोये गीत जाग उठेँगे l


यह सोचकर  मैं सपनों की दुनिया देखने के लिए जागती रही

और अब जो मेरे चाँद को ग्रहण निगल गया

तो मेरी अनिद्रा को नींद आ गई  l


मेरे आँसूओं से मेरी उदासी की चादर भी भीग गई 

और रात रानी की खुशबू के साथ घुल मिल कर

मेरे आँसूओं  का एक कतरा दूर  अनंत तक फैल गयी

जो चाँद तारों से भी परे है




 

3 comments:

  1. Bahut mubaraq! Maza aa gaya, eni dungi te pyari, mithi punjabi wich bahut soni likhi ei tusi!

    Likhdey ravo,

    Mithey supaney ji jindagi, rab ney diti, onoo, parwan kerdey raho!

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    1. Sangeeta, thank you. I studied in Convents& an American College so Punjabi was out of question. Doing Japji Sahib Path with my granny I would follow the sounds and recognise the alphabets.Read Nanak Singh. Personal interactions with Amrita Pritam and Shiv Batalvi coaxed me into learning to read and write little bit-no grammar of course but who's bothered !!! I just say what I feel. Your comments are so encouraging-thank you -pls. keep reading tho' I am writng v. little on FB these days.

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